जय जय हे भगवति सुरभारति !
तव चरणौ प्रणमाम: ।।
नादतत्‍वमयि जय वागीश्‍वरि !
शरणं ते गच्‍छाम: ।।1।।
त्‍वमसि शरण्‍या त्रिभुवनधन्‍या
सुरमुनिवन्दितचरणा ।
नवरसमधुरा कवितामुखरा
स्मितरूचिरूचिराभरणा ।।2।।
आसीना भव मानसहंसे
कुन्‍दतुहिनशशिधवले !
हर जडतां कुरू बुद्धिविकासं
सितपंकजरूचिविमले ! ।।3।।
ललितकलामयि ज्ञानविभामयि
वीणापुस्‍तकधारिणि ! ।।
मतिरास्‍तां नो तव पदकमले
अयि कुण्‍ठाविषहारिणि ! ।।4।।
जय जय हे भगवति सुरभा‍रति !
तव चरणौ प्रणमाम: ।।

4 comments

  1. जय जय हे भगवति सुरभारति !
    तव चरणौ प्रणमाम: ।

    धन्‍यवाद: भगिनि

     
  2. आनंद आ गया इसे पढ़कर! बहुत खूब।

     
  3. bahut khub

     
  4. कृपया
    प्रचारयतु
    प्रसारयतु



    मैं वृक्ष हूँ। वही वृक्ष, जो मार्ग की शोभा बढ़ाता है, पथिकों को गर्मी से राहत देता है तथा सभी प्राणियों के लिये प्राणवायु का संचार करता है। वर्तमान में हमारे समक्ष अस्तित्व का संकट उपस्थित है। हमारी अनेक प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं तथा अनेक लुप्त होने के कगार पर हैं। दैनंदिन हमारी संख्या घटती जा रही है। हम मानवता के अभिन्न मित्र हैं। मात्र मानव ही नहीं अपितु समस्त पर्यावरण प्रत्यक्षतः अथवा परोक्षतः मुझसे सम्बद्ध है। चूंकि आप मानव हैं, इस धरा पर अवस्थित सबसे बुद्धिमान् प्राणी हैं, अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि हमारी रक्षा के लिये, हमारी प्रजातियों के संवर्द्धन, पुष्पन, पल्लवन एवं संरक्षण के लिये एक कदम बढ़ायें। वृक्षारोपण करें। प्रत्येक मांगलिक अवसर यथा जन्मदिन, विवाह, सन्तानप्राप्ति आदि पर एक वृक्ष अवश्य रोपें तथा उसकी देखभाल करें। एक-एक पग से मार्ग बनता है, एक-एक वृक्ष से वन, एक-एक बिन्दु से सागर, अतः आपका एक कदम हमारे संरक्षण के लिये अति महत्त्वपूर्ण है।

     

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