अद्य अहं भवताम सम्‍मुखे एकं संस्‍कृतगीतं प्रस्‍तुतोमि। पठित्‍वा किंचित स्‍वविचारान प्रेर्षयन्‍तु।।

अवनितलं पुनरवतीर्णा स्‍यात् संस्‍कृत गंगाधारा
धीरभगीरथवंशोस्‍माकं वयं तु कृत निर्धारा।।

निपततु पण्डित हरशिरसि, प्रवहतु नित्‍यमिदं वचसि
प्रविशतु वैयाकरणमुखं, पुनरपिवहताज्‍जनमनसि
पुत्र सहस्रं समुद्धृतं स्‍यात यान्‍तु च जन्‍मविकारा

धीरभगीरथवंशोस्‍माकं वयं तु कृत निर्धारा।।

ग्रामं-ग्रामं गच्‍छाम, संस्‍कृत शिक्षां यच्‍छाम
सर्वेषामपि तृप्तिहितार्थं स्‍वक्‍लेशं नहि गणयेम
कृते प्रयत्‍ने किं न लभेत एवं सन्ति विचारा:

धीरभगीरथवंशोस्‍माकं वयं तु कृत निर्धारा।।


या माता संस्‍कृतिमूला, यस्‍या: व्‍याप्ति: सुविशाला
वांग्‍मयरूपा सा भवतु, लसतु चिरं सा वांग्‍माला
सुरवाणीं जनवाणी कर्तुं यतामहे कृतशूरा:

धीरभगीरथवंशोस्‍माकं वयं तु कृत निर्धारा।।


संस्‍कृतभारती भारती संस्‍थाया: गेय संस्‍कृतं पुस्‍तकात साभार गृहीत:।।

1 Responses to अवनितलं पुनरवतीर्णा स्‍यात- संस्‍कृतगीतं ।।

  1. Mahak Says:
  2. @ आनंद भाई
    ये बहुत ख़ुशी की बात है की चलो किसी ने तो कहा की हां मैं इन शंकाओं का समाधान करना चाहूंगा और आपकी इस बात के लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ और आपको वादा करता हूँ की आप इनका जो भी समाधान देंगे उन्हें मैं अपने blog पर हुबहू प्रस्तुत करूंगा .
    आपकी या किसी की भी भावनाओं को आहत करना मेरा मकसद बिलकुल नहीं है.मैं बस चाहता हूँ की किसी भी धर्म में जो गलत परम्पराएं हैं वो दूर हों क्योंकि वे आज बहुत से लोगों के जीवन के लिए अभिशाप बनी हुईं हैं .मैं आपको जल्दी से जल्दी आपके दिए हुए e -mail पर वे शंकाएं भेजूंगा और आपसे जल्द से जल्द समाधान की आशा करता हूँ ताकि उसे जल्द से जल्द अपने blog पर डाल सकूं
    मुझे इस बात का गहरा दुःख है की मेरे उस लेख से आपकी भावनाएं आहत हुईं.इसके लिए मुझे माफ़ करें .लेकिन एक बात ध्यान रखें "Criticism " को गलत अर्थों में नहीं लेना चाहिए .वो हमारी भलाई के लिए ही होता है.कई दवाइयां कडवी होती हैं लेकिन उनका असर हमारी भलाई ही करता है .एक बार फिर से मुझे माफ़ करें लेकिन मेरा प्रयोजन वो बिलकुल नहीं था जो आप समझ बैठे .
    आप मेरे blog पर आये, अपने मन की बातें बहुत ही इमानदारी और शालीनता से रखीं, इसके लिए आपका बहुत-२ धन्यवाद .आगे भी आते रहें ,मुझे लगता है की मुझे आप जैसे अच्छे लोगों की मुझे बहुत आवश्यकता है .

    धन्यवाद

    महक

     

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