अहं अति पुनीत कार्यं मत्वा अस्य संस्कृत ब्लाग इत्यस्य आरम्भ: कृतवान्। मम आशा आसीत यत् जना: प्रेरिता: भविष्यन्ति अनन्तरं संस्कृत लेखनस्य आरम्भ: ब्लागजगति अपि भविष्यति किन्तु मम स: स्वप्न: इदानीं मिथ्या प्रतीयते । इदानीं अहं चिन्तयामि यत् किं मम निर्णय: सम्यक न आसीत किल । संस्कृत मातु: सेवार्थं उत्थापितं मम सोपानक्रम: कि अत्रैव समाप्स्यते ।
किन्तु इदानीं साक्षात् मनसि पुन: आयाति यत् देवकार्यम् अयम् ।
अत: अहं एतत् कार्य न त्यजामि । कथमपि न त्यक्षामि । पुनश्च कश्चित् अपि न पठेत चेदपि संस्कृत लेखनं तथैव करिष्यामि । भगवत: कार्यं अयं स: भगवत: एव साधयिष्यति ।
।। जयतु संस्कृतम् । जयतु भारतम् ।।
@ अत: अहं एतत् कार्य न त्यजामि ।
------यही है असली निष्ठा , असली उत्साह , ऐसे कार्यों का मूल्य स्थायी
होता है ,ठोस काम है यह , धारा से अलग हटकर ! आप लगे रहें !
मित्र ! मैं लिखकर सहयोग करने की स्थिति में नहीं हूँ पर पढता हूँ , और
खुद को ही आश्चर्य होता है कि आप इतना सरल लिखते हैं कि मेरी समझ में
भी आ जाता है ! इसके लिए आप अलग से भी धन्यवाद के पात्र हैं ! मैंने
स्नातक संस्कृत के साथ किया है , सो इससे लगाव भी है !
इसी तरह आप लिखते रहें , इतना ही सरल , सहज और छोटी - छोटी
प्रविष्टि के रूप में , बहुत लंबा होने पर लोग ऊब से बचने के लिए नहीं पढ़ते !
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मैं अवधी मातृभाषा से ताल्लुक रखता हूँ , अवधी में ब्लॉग लिखता हूँ , शुरुआत
में ऐसे ही निराश करने वाले विचार आये थे कभी- कभी , पर मैं आज तक
उस अवधी ब्लॉग को जारी रखा हूँ और जारी रखूंगा | इस स्थिति में
अपने कार्य को 'स्वान्तः सुखाय ' मान लिया जाय तो भी धीरज बंधता है ! आभार !
यदि आप इसे बन्द करेंगे तो घोर अन्याय करेंगे अपनी मातृभूमि के साथ....