सर्वेषां भारतीयानां कृते मम हार्दिकं अभिवादनमस्ति
अतीवहर्षस्य विषय: अस्ति यत् भगवत: श्रीरामस्य जन्मभूमि: अद्य न्यायालयेन भगवत: एव अस्ति इति निर्णय: स्थापित:
श्रीउच्चन्यायालयस्य त्रय: न्यायाधीशा: अपि एकस्वरेणेव स्वीकृतवन्त: यत् तत्र भगवत: श्रीरामस्य जन्मं अभवत् ।
यदा बाबर आगत: स: मीरबाकीं निर्देशितवान् । मीरबाकी श्रीरामजन्मभूमिं अत्रोटयत् अनन्तरं तत्र मस्जिद निर्माणं अकारयत् ।।
अत: अद्य श्रीन्यायाधीशमहोधया: मिलित्वा निर्णयं दत्तवन्त: यत् सा भूमि: भगवत: एव भवेत् ।।
भवन्त: सर्वे मया सह एकस्वरेण उच्चै: भगवत: श्रीरामस्य जय इति वदन्तु ।।
जय श्रीराम ।।
जय श्रीराम!
बधाई हो -
सत्य को जितना भी दबाया जाये - पर वो सामने आकार ही रहता है.
"अहो दुरंत बलवदविरोधिता"
बलवान के साथ विरोध करने का फल बुरा होता है.
............ प्रतिपक्षी ये बात जानता न था.
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आनंद भवतु. कल्याणं अस्तु.
बधाई हो -
सत्य को जितना भी दबाया जाये - पर वो सामने आकार ही रहता है.
भगवत: श्रीरामस्य जय इति
जय श्रीराम ।।
बधाई हो -
सत्य को जितना भी दबाया जाये - पर वो सामने आकार ही रहता है.
भगवत: श्रीरामस्य जय इति
जय श्रीराम ।।
भगवत: श्रीरामस्य जय इति
जय श्रीराम ।।
संस्कृत में कहें तो
सत्यमेव ज्येते
राम नाम सत्य है
श्री रामचन्द्र जी की शान इससे बुलंद हैकि कलयुगी जीव उन्हें न्याय दे सकें, और श्री राम चन्द्र जी के राम की महिमा इससे भी ज्यादा बुलंद कि उसे शब्दों में पूरे तौर पर बयान किया जा सके संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि राम नाम सत्य है और सत्य में ही मुक्ति है।अब राम भक्तों को राम के सत्य स्वरुप को भी जानने का प्रयास करना चाहिए, इससे भारत बनेगा विश्व नायक, हमें अपनी कमज़ोरियों को अपनी शक्ति में बदलने का हुनर अब सीख लेना चाहिए।
आप सब को क्रमश: धन्यवाद
खासकर श्री ऐजाज साहब का जो एक सच्चे भारतीय होने का फर्ज निभा रहे हैं । यदि सभी बन्धु इसी भावना से भावित हो जाएँ तो भारत सच में विश्व का सबसे शक्तिशाली देश बन जाए ।।
आप सब को पुन: क्रमश: धन्यवाद
एजाज़ साहब सत्य कभी छुप कर अपनी बात नहीं कहता. आप जो कहना चाहते है वह स्पष्ट रूप से तो कहिये. आप जानतें है की आप क्या मनवाना चाहतें है और हर रामभक्त भी जानता है की वह क्या मानता है. किसी एक उपासना पद्दत्ति के प्रति अनावश्यक दुराग्रह उचित नहीं है महाशय.
सत्य हमेशा सर्वतोमुखी होता है. किसी एक तरफी नहीं होता. एक ही लीक्ठी मत कूटीये, अखिल ब्राह्मांड -नायक चराचर में समान रूप से रमने वाला राम दशरथ-पुत्र राम भी है. इसे आप ना माने कोई हर्ज़ नहीं है पर यह दुराग्रह की सभी एक ही बहाव में बहें और अपने परमेश्वर को एकदेशीय मानकर संकुचित पद्दत्ति के अनुगामी बने, जिसमें "यो यथा माम प्रपध्यन्ते" के अनुसार अपने स्वामी से संपर्क के लिए अवकाश ना हो किस प्रकार उचित है ?
बंधु आनंद पांडे जी विष अगर स्वर्ण-कलश में भी हो तो भी विष ही रहेगा. एजाज़ साहब जो कहना चाहते है वह कतई उन्नति पथ नहीं है.
क्षमा कीजियेगा
अमित जी
शायद मैं सही अर्थ का अवगमन नहीं कर सका ।।