नमो नमः 

अत्र भवतां सर्वेषां अतीव स्वागतम् ॥ मम एषः सौभाग्यः यत् भवतां समक्षे किमपि वक्तुं अवसरः मया लब्धः ॥ तर्हि तदनुगुणं-
अद्य आरभ्य वयं ज्योतिष विषये क्रमशः चर्चां करिष्यामः ॥
वयं सर्वे जानीमः यत् भारते विज्ञानस्य तादृशी परम्परा आसीत् यत् दृष्ट्वा,पठित्वा वयं गौरवं अनुभवामः - तस्य वैज्ञानिकी-परम्परायां ज्योतिषं अपि आयाति॥ ज्योतिष अर्थात प्रकाशः एषः सामान्यार्थः विशेष-दर्शन शक्तिः नाम अपि ज्योतिषमिति ॥ शनैः-शनैः वयं यदा अस्य अभ्यासं करिष्यामः तदा अन्ये अर्थाः अपि अस्माकं मस्तिष्के आगमिष्यन्ति ॥ 
ज्योतिष-नामक शास्त्रे त्रीणि रूपाणि कथितानि - होरा, सिद्धान्त, संहिता च अत्र क्वचित् भेदाः अपि दृश्यन्ते परम् सः  नैव अस्माकं विषयः ॥
तत्र होरा अन्तर्गते एव फलितम् इति॥ फलितम् नाम फल-ज्ञानम् ॥ किं च फल-ज्ञानम् ? अर्थात् कर्मणः फलम् प्रायशः अस्माकं मनसि एषा शङ्का अपि आयाति यत् कर्म प्रधानं व भाग्य प्रधानं ? अस्मिन विषये अपि ज्योतिष-शास्त्र सम्यक् निर्णयं ददाति ॥ अग्रे सः विषयः अपि समक्षे भविष्यति ॥ 
प्रथमं अस्माभिः प्रारम्भे चरणे ग्रहाणां नामानि ज्ञातव्यानि- सूर्यः चन्द्रः, भौमः,बुधः,गुरुः,शुक्रः,शनिः,राहुः,केतुः च एते ग्रहाःएव न केवलं आकाशे अपितु चराचरं प्रभावयन्ति ॥ अनन्तरं वयं नक्षत्राणां नामानि तेषां माध्यमेन राशि निर्माणं विषये च  पठिष्यामः ॥  

10 comments

  1. Mahak Says:
  2. मेरी तरफ से आपका लेखन और ब्लॉग जगत में बहुत-२ स्वागत है

    एक निवेदन-कृपया कमेन्ट बॉक्स में ही सही पर उपरोक्त लेख के थोड़े से अंशों को हिंदी में भी प्रस्तुत करें

    शुभकामनायें एवं हार्दिक बधाई

    महक

     
  3. श्री भूपेन्‍द्र महोदय:
    सर्वप्रथमं तु भवत: स्‍वागतमस्ति अस्‍माकं संस्‍कृतजालपृष्‍ठस्‍योपरि ।

    सम्‍प्रति भवान अपि अस्‍माकं कुटुम्‍बीय: एव अत: औपचारिकतां विहाय, संस्‍कृतप्रसाराय वयं मिलित्‍वा कार्यं करिष्याम: ।


    इदानीं जालजगति न सन्ति वहव: संस्‍कृतज्ञ: ये संस्‍कृतं अवगच्‍छन्ति अपि अत: प्रारम्‍भे एवमपि भवितुमर्हति यत् भवत: लेखानाम् उपरि टिप्‍पणय: न आगच्‍छेयु:, किन्‍तु तथापि अस्‍माभि: प्रयास: न त्‍यक्‍तव्‍य:



    वयं खलु भारतमातु: धीरवरा: पुत्रा:, अत: संस्‍कृतसेवायां प्रशस्ति: नापि मिलति चेदपि खेद: नैव ।


    वयं भवता सह् मिलित्‍वा कार्यं कुर्म:, एवमेव जालजगति अपि संस्‍कृतस्‍य दीर्घप्रसार: भविष्‍यति इति मे आशा ।


    धन्‍यवाद: ।।

     
  4. महक जी

    आपकी सलाह अवश्‍य ही ध्‍यातब्‍य है ।
    हम इस विषय पर मिलकर विचार करेंगे और हर लेख के मूल विषयों का संक्षिप्‍त हिन्‍दी अनुवाद उसी लेख की टिप्‍पणी में प्रस्‍तुत कर दी जाएगी ।
    साथ ही कठिन शब्‍दों का अर्थ भी नीचे प्रस्‍तुत किया जाएगा ।


    आपकी सलाह के लिये धन्‍यवाद ।।

     
  5. mera anurodh bhi mahak jee ki tarah se hi hai.

     
  6. संस्कृत ब्लाग देखकर बेहद खुश हुआ मगर समझ पाना काफी मुश्किल लगा। क्या इसका हिंदी अनुवाद भी इसी लेख के नीचे नहीं दिया जा सकता। अगर इसे पढ़कर समझ पाने का कोई उपाय निकालें तो बेहतर होता। संस्कृत भाषा में ब्लाग लेखन केलिए आप बधाई के पात्र हैं।

     
  7. DHEERAJ Says:
  8. इस बेहतरीन प्रयास के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। मेरी माँग भी अन्य सदस्यों की तरह हैं।

     
  9. jyotish Says:
  10. साधुवादः -
    अहम् आगामी लेखे तथा लिखितुम प्रयासम करिष्यामि |

     
  11. Poorviya Says:
  12. ek sunder prayas hai hum aap kai saath hai

     
  13. (The Blogger user आनन्‍द पाण्‍डेय has invited you to contribute to the blog: संस्‍कृतं- भारतस्‍य जीवनम्.)
    श्री आनंद जी,
    निमंत्रण के लिए धन्यवाद.
    Sorry,Actually the web is new to me. I posted the following shlok which has retuned. So I am sending in this way.
    अप के निर्देशानुसार निम्न सरस्वती वंदना का श्लोक भेज रही हूं.
    साभार.
    शारदा मोंगा.


    या कुंदेंदु तुषार हार धवला, या शुभ्र वस्त्रवृता.
    या वीणावर दंड मंडित करा, या श्वेतपद्मासना.
    या ब्रह्माच्युतशंकरभृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता.
    सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेष जाड्यापहा.
    जो कुंद पुष्प, चंद्रमा और वर्फ के कंठमाळ के समान श्वेत हैं,
    जो शुभ्र वस्त्र धारण करती है
    जिनके हाथ, श्रेष्ठ वीणादंड से सुशोभित हैं,
    जो श्वेत कमल पर आसन ग्रहण करती हैं|
    ब्रह्मा, विष्णु और महेश आदिदेव, जिनकी सदैव स्तुति करते हैं|
    वह भगवती सरस्वती, मेरी सारी (मानसिक) जड़ता-मुर्खतादूर करके मेरी रक्षा करे.||

     
  14. I am sending one more shlokm:

    या देवी सर्वभूतेषु माँ रूपेण संस्थिता
    या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता
    उया देवो सर्वभूतेषु बुद्धि रूपेण संस्थिता
    या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मी रूपेण संस्थिता.
    नमस्तस्यै नमो नम:
    अर्थम
    :-अलौकिक देवी जो सब जीवों में माँ के रूप में रहती है,
    जीवों में शक्ति के रूप विद्यमान है,
    बुद्धि के रूप में विराजमान है,
    सत्य के धन के रूप में निवास करती है,
    हम उस देवी को नमन करते हैं, सदा ही समन करते रहेंगे.

     

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