सर्वेषां जनानां कृते प्रकाशपर्व:  'दीपावली '' मंगलं भवेत् । 
अस्मिन् अवसरे इदं विचारणीयम् अस्ति यत् किं वयं तमस् पथनिवारणार्थं  किंचित् अपि जागृतं स्‍म: ।
वयं प्रतिदिनं भ्रष्‍टाचारं निन्दयाम:  किन्तु तस्‍य निरोधनाय किंचित् अपि प्रयासं न कुर्म: ।।  
वयं स्व कार्यं समयेन  न कुर्म: ।  वयं सर्वकारीय कार्यालयानां वाहनानि प्रतिदिनं स्वकार्यार्थं उपयोगं कुर्म: । 
विद्युतस्‍य सम्‍यक् प्रयोगं न कुर्म: अपितु अनुचित साधनानां उपयोगं कुर्म: ।  
अहं अस्मिन् अवसरे निवेदयामि यत्  सम्‍प्रति राष्‍ट्रसेवार्थं संकल्‍पं स्‍वीकुर्म:,  एवं प्रकारेण भ्रष्‍टाचारं न प्रसारयाम: । 

4 comments

  1. ईश्वर और चीज़ों के नाम वेदों में गडमड हैं और वेदों के वास्तविक अर्थ निर्धारण में यह एक सबसे बड़ी समस्या है। सायण जिस शब्द का अर्थ सूर्य बता रहे हैं , उसी का अर्थ मैक्समूलर साहब घोड़ा बता रहे हैं और दयानंद जी कह रहे हैं कि इसका अर्थ है ‘ईश्वर‘। अब बताइये कि कैसे तय करेंगे कि कहां क्या अर्थ है ?
    परमेश्वर के वचन के अर्थ निर्धारण के लिए केवल मनुष्य की बुद्धि काफ़ी नहीं है। इसे आप परमेश्वर की वाणी कुरआन के आलोक में देखिए।

     
  2. जमाल भाई
    कदाचित् आपकी सोंच यहीं तक पहुँच सकती थी जो आपने वेदों को गडबड कह दिया । वेद का अर्थ परमगूढ है उसे हर ब्‍यक्ति अपनी तरह से ब्‍याख्‍यायित करता है । मैक्समूलर , सायण या दयानन्‍द जी ने भी मात्र अपने विचार व्‍यक्‍त किये हैं, ये वेद के विचार नहीं हैं । अभी जैसे आपने वेद के प्रथम मन्‍त्र में आये इळ शब्‍द को इल और इला पढ कर अल्‍लाह से जोड लिया था ।
    अब आपके या किसी भी व्‍यक्ति के व्‍यक्तिगत विचार वेद के तो नहीं हो सकते ।
    वैसे मैं कई दिनों से ये सोंच रहा हूँ कि आप इतना कुतर्क कर कैसे लेते हैं ।
    हमें भी कोई तरीका बताइये ।। हो सके तो............

     
  3. आदरणीय मिश्रा जी
    संस्‍कृत के पावन प्रसार में हमारा साथ देने के लिये आपका आभार ।

     
  4. आपको भी सपरिवार दिपोत्सव की ढेरों शुभकामनाएँ
    मेरी पहली लघु कहानी पढ़ने के लिये आप सरोवर पर सादर आमंत्रित हैं

     

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