श्री विष्‍णुकान्‍तवर्येण एकं आवाह्नं कृतमस्ति राष्‍ट्राय, राष्‍ट्रभाषायां
क्षम्यतां यत् तस्‍य प्रकाशनम् अनवधानकारणात् मूललेखे कृतम् ।
सम्‍प्रति त्रुटि: समीक्रियते ।।

1 Responses to राष्‍ट्रसेवाया: कृते पन्‍थाह्वानम् ।।

  1. श्री विष्‍णुकान्‍त जी ने भ्रष्‍टाचार के खिलाफ बहुत सुन्‍दर चार पंक्तियाँ प्रस्‍तुत की थीं , अनवधान के कारण उन्‍होने इसे मूल लेख में लिख दिया था किन्‍तु चूँकि यह संस्‍कृतभाषा का ही पृष्‍ठ है अत: मूल लेख में हिन्‍दी का प्रयोग वर्जित होने के कारण मुझे इस लेख को हटाना पडा ,
    पर ये पंक्तियाँ मैं यहाँ टिप्‍पणी पेटिका में रख रहा हूँ ।



    भारती के भाव विह्वल आंसुओ की याचना है
    तुम कलम से विरह के अब गीत लिखना छोड़ दो
    हास्य की यह रितु नही है एक केवल कामना है ,
    तुम चरण चारण की अपनी बात करना छोड़ दो.
    भ्रष्ट होते तन्त्र की ब्यथा पर अब कुछ लिखो ,
    दर्द से होती तड़प की वेदना पर कुछ लिखो ,
    चीर खोती द्रोपदी की नग्नता पर कुछ लिखो..
    आतंक भ्रस्टाचार की इन गठरियों को खोल दो..


    विष्‍णुकान्‍त जी को सादर धन्‍यवाद

     

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