अत्र पुन: सन्ति कानिचन दैनिक वाक्‍यानि , आशामहे यत् भवन्‍त: पूर्वतनानां अभ्‍यास: कृतवन्‍त: स्‍यु: । पूर्वतनानां अभ्‍यास: कर्तुम् अत्र लिंक दत्‍तम् अस्ति ।

सामान्‍यजीवने प्रयोगाय कानिचन् दैनिकवाक्‍यानि-प्रथम: अभ्‍यास: 

सामान्‍यजीवने प्रयोगाय कानिचन् दैनिकवाक्‍यानि- द्वितीय: अभ्‍यास:



कार्यक्रम: कदा ?            कार्यक्रम कब है  ?
अद्य न , स्‍व:                 आज नहीं कल (आने वाला)
तद् ह्य: एव समाप्‍तम्     वह कल (बीता हुआ) ही समाप्‍त हुआ ।
इदानीम् एव ?
               अभी  ?
आम्,          
                  हाँ
प्राप्‍तं किम् ?                 मिला क्‍या ?
कस्मिन् समये ?
            कितने बजे  ?
पंच (वादने)                  पांच (बजे)
आवश्‍यकं न आसीत्
      नहीं चाहिये था ।
महान् आनन्‍द:            बहुत अच्‍छा, बहुत खुशी की बात है
प्रयत्‍नं करोमि   
            प्रयास करूंगा\करूंगी
न शक्‍यते भो:  
             नहीं हो सकता
तथा न वदतु                   ऐसा मत कहिये
कदा ददाति ?                   कब दोगे ?
अहं किं करोमि ?              मैं क्‍या करूँ ?

ऐते सन्ति केचन् दैनिक शब्‍दा: वाक्‍यानि च
क्रमश:,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

4 comments

  1. बढ़िया..

     
  2. wah g wah...

     
  3. विवेकानंद जी,
    कृपा करके संस्कृत भाषा का शुरू से ज्ञान प्रसारित करें ताकि मानवता का कल्याण हो. एक एक पाठ्य दें.. नियम कायदे सहित

     
  4. Dinesh Saroj Says:
  5. आनंद जी, आप का प्रयास बेहद ही सराहनीय है... संस्कृत हम भारतीयों की एवं समस्त विश्व की प्राचीनतम भाषा मानी जाती रही है, परन्तु जब मैं "शास्त्र-शब्द व्याख्या"http://shastra-shabd-vyakhya.blogspot.com/ पर प्रकाशित शब्द व्याख्यान पढ़ता हूँ तो गहरी शंका से घिर जाता हूँ, कृपया प्रकाश डालें...

    [मेरा प्रश्न शास्त्र-शब्द व्याख्या ब्लॉग' की निंदा करना कतई नहीं परन्तु वहां दिए गए शब्द व्याख्यान के आधार से है.]

     

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